कल एक मैया को एक व्यक्ति व्हीलचेयर पर बैठा कर ले जा रहा था । हम चार पांच वैष्णव धीर समीर में सड़क के किनारे गार्डन में बैठ कर भगवत चर्चा कर रहे थे ।मैंने उनसे पूछा यह कौन है मैया । मैया के हाथ में माला झोली थी वह जप कर रही थी । उस नौकर को भी मैने देखा और वह रुक गया ।मय्या ने भी मेरी तरफ देखा वह जानती नहीं थी लेकिन फिर भी प्रणाम जैसा किया । मैंने नौकर से पूछा यह कौन है । नौकर ने कहा यह हमारे बॉस की माता जी हैं । मैंने कहा तुम कहां रहते हो । मुझे बॉस ने इनके साथ रहने का आर्डर दिया है । मैं इनके साथ इनके घर में ही रहता हूं ।और कौन रहता है । एक महिला बहन जी और रहती हैं जो इन मैया को स्नान आदि कराती हैं इनके ठाकुर के लिए भोजन बनाती हैं उनका ध्यान रखती है
मैं इनको रोज व्हीलचेयर में घुमाता हूं और बाजार से सामान वगैरह ले कर आता हूं इनके घर में ही हम दोनों रहते हैं तुम कहां खाते-पीते हो मैंने उस नौकर से पूछा । जब मैं सेवा इनकी करता हूं तो खाना पीना भी यही इनके घर में ही करता हूं । यहीं रहता हूं ।यही सब कुछ करता हूं मेरा भी यही घर है बहुत अच्छा लगा उनसे बात करने के साथ ही एक भावना मन में आई । हम कौन हैं । कृष्णदास ।मोटी भाषा में कृष्ण के नौकर । जैसे वह मैया का नौकर था । जो व्हीलचेयर चला रहा था |हमारा जो घर जिसे हम अपना घर कहते हैं वह वास्तव में श्रीकृष्ण का घर है । कृष्ण जब उस में विराजमान हैं तो घर उनका ही है ।हम कृष्ण की सेवा के लिए वहां रहते हैं उनकी सेवा ही हमारा मुख्य कार्य है । सेवा के साथ-साथ हम अपना पेट भी भरते रहते हैं । अपने काम भी करते रहते हैं । नहाते भी हैं । खाते भी है । लेकिन मुख्य काम हमारा अपने मालिक की सेवा करना । अपने मालिक को सुख प्रदान करना । नौकर होता ही मालिक के सुख के लिए है । हम दास हैं । हम कृष्ण के सामने एक मच्छर जैसे हैं लेकिन दास का स्वाभाविक कर्म स्वामी की सेवा ही होता है । यह नहीं सोचना चाहिए कि हम इतने छोटे दास श्रीकृष्ण को कैसे सुख दे सकते हैं । ठीक वैसे ही जैसे वह एक छोटा मोटा सा नौकर अपनी बॉस की मां को सुख दे रहा है । ऐसे ही हम भी अपने कार्यो द्वारा कृष्ण को सुख दे सकते हैं । शुरु से ही यदि यह थीम बनाई जाए यह घर कृष्ण का । इसमें कृष्ण विराजमान रहेंगे और इस घर में रह कर हम कृष्ण की सेवा करेंगे तो सच मानिए घर में जो कृष्ण का रूम होगा वह एक कोने में 1 फुट बााई 2 फुट का नहीं होगा अपितु पूरा एक रूम कृष्ण का होगा और एक छोटा सा रूम हमारे सोने के लिए होगा ।थीम यहीं से यदि शुरू हो तो सारा काम बनता जायेगा । हम चाहते तो है कृष्ण का सुख । कहते भी हैं अपने को कृष्ण का दास । लेकिन ऐसी हमारे कमरे में ही लगा हुआ है । कृष्ण तो एक कोने में राधे राधे श्याम मिलादे ।थीम शुरु से बनेगी तो जीवन पूरा कृष्ण को समर्पित रहेगा बाकी के काम साथ-साथ मुख्य काम कृष्ण की सेवा ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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