"Kaliya Naag ka Sawbhav" "कलिया नाग का स्वभाव"
कलिया नाग का स्वभाव
कालिया नाग ने प्रभु की स्तुति की और कहा - प्रभु ये मेरा स्वभाव है आपने ही बनाया है और स्वभाव छूटता नहीं है ।

भगवान ने कहा कि ठीक है, कोई और कहे जो स्वभावानुकूल आचरण में लगा हो। तुम अनेक समय से धाम में हो ! यमुना के जल में हो !आज मेरे चरणों का स्पर्श भी तुम्हे प्राप्त हो गया ।फिर भी तुम अपने स्वभाव का रोना रो रहे हो तो तुम्हे धाम में रहने का अधिकार नहीं एक साधक भी यदि इतना सब पाकर अपना स्वभाव नहीं बदलता अपितु,उसकी आड़ लेता है तो उसे भी धामवास का अधिकार नहीं ।भागो यहाँ से !
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।।
लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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