"Panchdev or bhagwan" "पंचदेव और भगवान"
- Dasabhas DrGiriraj Nangia
- Apr 18, 2019
- 2 min read
पंचदेव और भगवान
सृष्टि में 5 देवों की उपासना प्रचलित है । विष्णु शिव देवी सूर्य गणेश वैसे तो सभी की उपासना सब करते ही हैं, लेकिन जो लोग गणेश को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह गाणपत्य कहलाते हैं ।जो सूर्य को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह सौर कहलाते हैं ।जो देवी को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वे शाक्त कहलाते हैं ।जो शिव को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह शैव कहलाते हैं और जो विष्णु को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह वैष्णव कहलाते हैं ।विष्णु आदि यह सभी पांच "देव" हैं और यह सभी किसी न किसी प्रकार से भगवान श्री कृष्ण के अंश ही है या आवेश है या शक्तियां हैं या अंश के अंश है । इनमें से कोई भी भगवान नहीं है ।इसीलिए पंचदेवोपासना कही गई है "पंच भगवान उपासना" नहीं कही गई है । देव अनेक होते हैं । भगवान एक ही होता है ।श्रीमद भागवत में इन सब का वर्णन करते हुए स्पष्ट कहा है "एते चांश कला पुंसः कृष्णस्तु भगवान स्वयं" । कृष्ण साक्षात भगवान हैं ।

इन् देवों की पूजा करना कोई मना नहीं है लेकिन यदि इनको सर्वोपरि सत्ता या ईश्वर या भगवान मानकर पूजा किया जाए तो श्री कृष्ण के प्रति यह उपेक्षा एवं अपराध है ।कृष्ण के दास, कृष्ण के सेवक, कृष्ण के अनुचर मान के इनकी पूजा प्रणाम में कोई हानि नहीं है अपितु ऐसा करने से यह देवी देवता भी साधक को कृष्ण प्रेम पथ प्रदान करते हैं । कृष्णा सेवा प्रदान करते हैं । कृष्ण की ओर मोड़ देते हैं ।भगवान श्री कृष्ण के प्रकाश हैं बलराम । बलराम के अंश है महा विष्णु । महा विष्णु के फिर अंश के अंश है यह ब्रम्हा विष्णु महेश । विष्णु शब्द एक तो इन विष्णु का वाचक है ।दूसरा विष्णु शब्द का अर्थ होता है विभु जो सर्वत्र व्याप्त है । अथवा विष्णु शब्द का अर्थ इष्ट भी है । जहां लिखा गया इसके पश्चात विष्णु की पूजा करें अर्थात अपने इष्ट की पूजा करें ।भगवत स्वरुप इष्ट वह कृष्ण, राम, वामन, नरसिंह जो स्वयं भगवत स्वरुप हैं । उनकी पूजा करें यह भाव है ।विष्णु का अर्थ इष्ट है और वेदों में अथवा पुराणों में विष्णु तक का ही वर्णन है । विष्णु के जो मूल तत्व है श्रीकृष्ण उनका वर्णन विशेष रूप से श्री मदभागवत में हुआ है ।इसलिए जो श्रीमद्भागवत के परिचय में है वह श्रीकृष्ण को अच्छी तरह जानते हैं और जो कर्मकांडी लोग पुराण आदि के टच में रहते हैं वह विष्णुस्वरूप तक ही पहुंच पाते हैं ।उसके ऊपर जो उनका मूल तत्व श्री कृष्ण है जो स्वयं भगवान है वहां तक उनकी गति नहीं जा पाती है । इसीलिए हम वैष्णव जन को अपने इष्ट के प्रति समर्पित हमें सदा श्री कृष्ण का ही पूजन उपासना करनी चाहिए ।श्रीराम से भी श्री कृष्ण में चार माधुर्य अधिक है । श्रीकृष्ण ही मूल तत्व है । परात्पर तत्व हैं । सर्वोपरि सत्ता है । परम ब्रह्म है । परात्पर ब्रहम है । इस बात को सदैव समझे रहना चाहिए ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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