सदगुरुदेव माने क्या
एक होते हैं गुरुदेव शिक्षा गुरु अथवा दीक्षा गुरु यही बन जाते हैं सदगुरुदेव
अपनी आज्ञा, निर्देशों का पालन करते हुए जब गुरुदेव एक शिष्य को देखते हैं, तो उनमें शिष्य के प्रति एक आत्मीयता का भाव आ जाता है,
और वे हृदय से उस शिष्य को स्वीकार करके उसके हित की कामना करते हैं
इसके विपरीत गुरु जी, गुरु जी तो कहता रहे और गुरु के आदेशों का पालन न करे अपितु मना करने पर भी विपरीत आचरण
करे, दिखावा करे, उपेक्षा करे, तो गुरुदेव की आत्मीयता नहीं बन पाती है,
आत्मीयता नहीं तो कृपा केसी,कृपा नहीं तो प्राप्ति कैसे ? गुरु जन राग या द्वेष से परे होते हैं वे ऐसे शिष्य से द्वेष फिर भी नहीं करते । लेकिन सदगुरुदेव वाली बात भी कहीं छूटती ही है । अतः हम प्रयास करें कि गुरुजन की आज्ञा पालन करते हुए उनके प्रिय बनें, आत्मीय बनें ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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