श्री कृष्ण अवतार?
श्रीमद्भागवत में कहा गया है
कृष्णस्तु भगवान स्वयं श्रीकृष्ण ही स्वयं भगवान है । सृष्टि के नियंता हैं। सर्वोपरि शक्ति हैं । अपितु शक्तिमान हैं । परात्पर ब्रम्ह है । सब कारणों के कारण है । और साथ में हमारे आपके इष्ट हैं ।मदभक्तानाम विनोदार्थं
करोमि विविधा क्रिया वैष्णव भक्त जनों को आनंद देने के लिए वह विविध प्रकार की लीलाएं करते हैं । उन लीलाओं के संपादन हेतु वह विविध अवतार भी लेते हैं ।अपने ऊपर के लोक से पृथ्वी लोक पर नीचे उतरने का भाव ही अवतार है । उन अवतारों में कैसी आनंददायक लीलाएं करते हैं जिनका गुणगान और स्मरण करते हुए हम साधक लोग उनसे सदैव जुड़े रहते हैं और उनके चरणों की सेवा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।
अनेक अवतारों में दो महत्वपूर्ण अवतार है जो हमारे आपके इर्द-गिर्द तो रहते हैं, लेकिन हम उन्हें अवतार की तरह ट्रीट नहीं करते हैं । उन दो अवतारों में पहला है अर्चा अवतार । अर्थात् वह श्रीविग्रह । जो हमारे घर में विराजमान है, जिसकी हम अर्चना करते हैं । उसे हम विगृह ही मानते हैं । उसमें हमारी यह भावना यदि हो जाए कि साक्षात् श्री कृष्ण अवतार लेकर हमारे घर में विराजमान होकर हमारी सेवा पूजा स्वीकार करके हम पर कृपा करने को यहां विराजमान हैं । यदि यह भावना सिद्ध हो जाए फिर हम यह नहीं पूछेंगे । भइया जी ! हमें कृष्ण के दर्शन कब होंगे । नहीं होंगे क्या । अरे भाई कृष्ण के दर्शन तो हम रोज ही करते हैं कृष्ण तो हमारे घर में ही तो विराजमान हैं । फिर कृष्ण दर्शन कब होंगे का प्रश्न समाप्त होना चाहिए ।
दूसरे जो मुख्य अवतार हैं । जो हमारे इर्द-गिर्द हमेशा ही रहते हैं , वह है "नाम रूपे कलि काले कृष्ण अवतार"यह कृष्ण नाम भी कृष्ण का अवतार ही है जो 24 घंटे हमारी जिव्ह्आ पर नृत्य करता रहता है ।कृष्ण नाम को भी कृष्ण का एक अवतार शास्त्र में माना गया है । और कृष्ण नाम के इस अवतार का आसन हमारी जिह्वा पर है ।
वह सिंघासन पर नहीं विराजता । वह भोजन नहीं मांगता । वह शृंगार नहीं मांगता । वह केवल हमारी जिव्या पर नाचना चाहता है । यदि यह भाव दृढ़ हो जाए और जब हम नाम प्रारम्भ करें तो कृष्ण से कहे कि "कृष्ण ! अब तुम नाम रूप में आओ और मेरी जिहवा पर नृत्य करो । तो फिर बाकी क्या रह जाएगा । हम नाम कर तो रहे हैं । लेकिन आज से विग्रह और श्री नाम में साक्षात श्री कृष्ण की उपस्थिति हमें यदि होने लग जाए तो फिर इसके बाद कुछ पाने को शेष नहीं रहेगा ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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