भक्ति माने क्या
भक्ति एक सुना सुना या शब्द भक्ति माने पूजा अर्चना आरती दिखाना भोग लगाना सेवा करना आदि आदि ।लेकिन भक्ति का मूल अर्थ है भजन । भजन माने सेवा । सेवा सेवा सेवा ।भगवान की सेवा ही मुख्य रूप से भक्ति है। जैसे देश की सेवा माने देश भक्ति माता पिता की सेवा माने मातृ भक्ति मालिक की सेवा माने स्वामी भक्ति लेकिन कलयुग के प्रभाव से हम मालिक की सेवा पर केंद्र न करते हुए अपनी तनख्वाह अपनी सुविधा और कैसे कम से कम काम करके अधिक से अधिक धन ऐंठा जाए । ऐसे ही देश भक्ति के नाम पर नेता बनकर कैसे देश को लूटा जाए ।
ऐसे ही माता पिता की सेवा करके कैसे अपने हिस्से को जरूरत से अधिक खींचा जाए । और ठीक ऐसे ही कैसे कृष्ण की भक्ति करके अपने सुख बटोरे जाएं, अपना काम निकाला जाए, अपनी मनोकामनाएं पूर्ण की जाए, यद्यपि यह युग का प्रभाव है फिर भी ऐसी भक्ति को भक्ति तो कहते हैं लेकिन यह विशुद्ध भक्ति नहीं । विशुद्ध भक्ति वही है जहां हम जिस के भक्त हों केवल और केवल उसके सुख उसकी सेवा उसके हित का ध्यान रखा जाए
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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