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"Ye bhi ahankar hai" "ये भी है अहंकार"

ये भी है अहंकार

कुछ वैष्णव ऐसे हैं, वे समझते हैं,हम जो कर रहे हैं वही सर्व श्रेष्ठ है, जबकि सृष्टि में विविधता है और भी साधन, सम्प्रदाय हैं

"Ye bhi ahankar hai" "ये भी है अहंकार"
"Ye bhi ahankar hai" "ये भी है अहंकार"

जिस प्रकार हम अपनी उपासना पद्धति को कस कर पकड़े हैं, वैसे ही कोई दूसरा भी अपनी पद्धति को पकड़े हैं । लेकिन अहंकार के कारण मेरी उपासना, मेरा संप्रदाय, मेरे गुरु, मेरा शास्त्र, मेरे इष्ट करते हुए यहाँ अध्यात्म में भी वह मेरा - मेरा करता रहता है । ये अनन्यता नहीं, मूर्खता है ।निष्ठा या आचरण अपना - अपना सम्मान सबका, ये वैसे ही है, जैसे कामर्स का विद्यार्थी विज्ञान वाले की निंदा करे ।


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।।

लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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