ददब नहीं अदब
जब हम किसी सम्माननीय या श्रेष्ठ या अधिकारी से मिलने जाते हैं तो बहुत ही अदब और सिस्टाचारों का ध्यान रखते हुए वहां वर्तमान रहते हैं ।उसके कक्ष या केबिन में जोर-जोर से हंसते नहीं, चप्पल जूते बाहर ही उतार देते हैं बड़ी विनम्रता से पेश आते हैं
वेटिंग में बैठे हो तो आपस में जोर से हंसते नहीं
ना बात करते हैं ऐसे ही यदि कोई ऐसा श्रेष्ठ वरिष्ठ जन या अधिकारी हमारे घर आए और हमारे पिता या ससुर के साथ ड्राइंग रूम में बैठा हो तो घर में एक शांति सी रखते हैं ।बहुत ही अदब और शिष्टाचार से उसके साथ पेश आते हैं । जब एक छोटे-से अधिकारी के साथ या वरिष्ठ व्यक्ति के साथ हम यह शिष्टाचार रखते हैं तब हमें सृष्टि के नियंता सर्वश्रेष्ठ हमारे स्वामी हमारे इष्ट के मंदिर में जाते समय भी इसी प्रकार का शिष्टाचार रखना चाहिए ।मंदिर चाहे बाहर हो या घर का होजहां हमारे इष्ट विराजमान हैं
जहां प्रिया जी विराजमान हैं
जहां गुरुदेव विराजमान हैं
जहां गोस्वामी वृंद विराजमान हैं
जहां संत-महंत विराजमान हैं
जब हम उस मंदिर में जाएं तो मन में एक अदब एक शिष्टाचार रहना चाहिए मंदिर में
ना हम जोर जोर से बोले
ना हम हंसे
ना वहां बैठकर पिकनिक सी मनाए
ना चौपाल करें
न पेर चढ़ाकर बैठे
ना किसी की निंदा करें
ना किसी को डांटें
ना ऐसे महन्त जैसा माला धारण करके जाएं यह सब जो सेवा अपराध गिनाये गए हैं यह कोई खास बात नहीं है यह वही बातें हैं रोजमर्रा की जो हम जानते हैं ।हम करते हैं बस आवश्यकता है कि मंदिर घर का हो या बाहर का हो उस में विराजमान ठाकुर को हम जीवंत और जागृत समझे । हम यह समझे कि हमारे इष्ट यहां विराजमान हैं हमारे गुरुदेव यहां विराजमान हैं उनके सामने हम कैसे अभद्रता कर सकते हैं ।बस केवल इतना ही मन में भाव आना है कि हमारे ठाकुर यहां साक्षात विराजमान है । यह भाव आते ही अदब और शिष्टाचार तो हम में है ही वह अपने आप प्रकट हो जाएगा आजमा कर देखिए कभी
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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