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"Kinkri Sewa" "किंकरी सेवा"

किंकरी सेवा


आज अचानक में अपने एक सत्संगी मित्र की कुटिया पर गया । मैंने देखा छोटी सी कुटिया थी वह मित्र ठाकुर जी की सेवा कर रहे थे ।उसके बाद उन्होंने तुलसी जी को जल दिया । स्वयं बर्तन मांज, झाड़ू लगाई, पोछा लगाया, आदि ।इस प्रकार अन्य साफ़ सफाई आदि करके मेरे साथ स्थिर हो कर माला लेकर बैठ गए ।मैंने उनसे कहा आप तो समर्थवान हैं । आप एक बाई या नौकर रख लीजिए, जो यहां झाड़ू कर देगा, पोछा लगा देगा, बर्तन धो देगा, छोटी-मोटी सफाई कर देगा ।


"Kinkri Sewa" "किंकरी सेवा"
"Kinkri Sewa" "किंकरी सेवा"

हां ठाकुर सेवा, तुलसी सेवा आप स्वयं करिए । वे तपाक से बोले ! दासाभास । कैसी बात करते हो । जीव का स्वरुप क्या है । यह बताओ । मैंने कहा कृष्णदास या अपने गौड़ीय परंपरा में राधा जी की दासी ।तो बोले, राधा जी की दासी हम तभी बन पाएंगे ना जब हम इस लौकिक संसार में भी दासियों जैसा काम करेंगे । हमें दासियों जैसा काम करने की आदत रहेगी, संस्कार रहेंगे तभी तो वहां जाकर हम दासियों जैसी सेवा कर पाएंगे ।यदि हम जीवन भर रिमोट के बटन दबाते रहे तो प्रिया जी की निकुंज में बूहारी सेवा कैसे करेंगे ।प्रिया जी के लिए माला कैसे गूठेंगे । प्रिया जी को जल कैसे प्रदान करेंगे । अतः यह बहुत आवश्यक है कि हम यहां से ही इन छोटी-छोटी सेवाओं का अभ्यास करें ।और यह निश्चित है कि निकुंज में हमें यह छोटी-छोटी सेवाएं ही प्राप्त होनी है, यदि अभ्यास नहीं होगा तो वहां यह सेवाएं कैसे कर पाएंगे ।अतः मैं अभी से इनका अभ्यास कर रहा हूं, जिससे आगे चलकर मुझे परेशानी न हो ।


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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