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Writer's pictureDasabhas DrGiriraj Nangia

"Lena Dena" "लेना देना"

लेना देना

जिस प्रकार संसार में व्यवहार और लेन-देन चलता है वैसे ही ठाकुर के साथ भी लेना-देना चलता है ।हम लोग ठाकुर से सदा मांगते ही रहते हैं आशा ही करते रहते हैं वह भी लौकिक नाशवान भौतिक सदा ना रहने वाली चीजों की ।इतने पर भी भगवान हमें देते ही हैं । सबसे बड़ी चीजें है भगवान ने जो हमें दी हुई हैं

मनुष्य शरीर -पृथ्वी जल वायु अग्नि सूर्य आदि आदि उसके बदले में हम उनका शुक्रगुजार करते हुए भी उनको थोड़ी सी भी अपनी वृत्ति मन और समय भी नहीं देते हैं ।

"Mujhe 15000 log jaante hai" "मुझे 15000 लोग जानते हैं"

मन देना बहुत बड़ी बात है क्योंकि मन चंचल है धन हम दे क्या सकते हैं और धन ठाकुर को चाहिए भी नहीं केवल और केवल कुछ समय देना है । कुछ समय केवल समय । हम आशाएं तो यह रखते हैं कि ठाकुर हमारा सर्वविध कल्याण करें लेकिन 24 में से मुश्किल से एक घंटा भी नहीं देते हैं । यह कुछ कुछ वैसे ही है जैसे रूपये 50000 से एक आलीशान कोठी खरीदने की कल्पना करना यद्यपि ठाकुर के साथ यह उदाहरण शत-प्रतिशत उचित नहीं है ।वह बहुत दयालु है अकारण ही दया करता है लेकिन वह ठगा भी जाना पसंद नहीं करता है अतः हम प्रयास करें कि हम एक उचित समय अवश्य ही ठाकुर के लिए दें । जप करें कीर्तन करें सेवा करें ग्रंथ पढ़े साधुओं के साथ में सत्संग करें चर्चा करें ।हम आत्म निरीक्षण करें केवल एक घंटा समय देकर अपने पूरे जीवन को उनके जिम्मे करना कितना उचित है ।

समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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