भक्ति के स्तर
भक्ति भी वैसे ही है जैसे विद्या । विद्या अध्ययन करने के लिए हम लोग कक्षा 1 कक्षा 2 कक्षा 5 कक्षा 8 इस प्रकार से धीरे-धीरे कक्षाओं को पास करते हुए अगली कक्षाओं में चले जाते हैं और पिछली कक्षा छूट दी जाती है ।इसी प्रकार भक्ति के अंगो का अनुष्ठान करते करते हम अगले भक्ति के अंग पर जाते हैं । कभी-कभी कुछ अंग छूटते हैं तो इसमें खेद नहीं करना चाहिए ।
जैसे हम भक्ति की चार कक्षा में है । धीरे-धीरे हम उस 4 कक्षा को पास करते हुए पांचवी में प्रवेश करते जा रहे हैं और कक्षा 4 की कुछ बातें छूट रही है तो कोई हानि नहीं है ।लेकिन हां हम पांचवी कक्षा की ओर तो बढ़ नहीं रहे हैं चौथी भी सफलतापूर्वक निर्वाह हो नहीं रही है अपितु चौथी कक्षा भी छूटती जा रही है तब चिंता का विषय है ।अन्यथा प्रगति पथ पर चलने पर सदैव कुछ चीजें पीछे छूटती ही है उनका छूटना छूटना नहीं माना जाता ।बिना आगे बढ़े हुए जो वर्तमान है वह भी यदि छूट रहा है तो छूटना माना जाता है और वह चिंता का विषय है ।
अतः हमें इस पर सूक्ष्मता से चिंतन करना चाहिए ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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