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Writer's pictureDasabhas DrGiriraj Nangia

"Paisa maara gaya" "पैसा मारा गया"

पैसा मारा गया


यह वाक्य तो ऐसा ही है जैसे पुत्र मारा गया या मर गया, पिता जी मर गए, माता जी मर गए, पति पत्नी भाई बंधु आदि आदि ।इनके मरने पर हम महिने 2 महीने 4 महीने 6 महीने में इनको भूल जाते हैं । और अपने जीवन को दोबारा से व्यवस्थित कर देते हैं , मरने वाले के बिना ।लेकिन जीवन में हमारा पैसा भी कभी कभी मारा जाता है । वह दो लाख 20 लाख 50 लाख कितना भी हो सकता है । हम कह तो देते हैं । मारा गया । लेकिन कहीं ना कहीं हमें यह उम्मीद लगी रहती है कि शायद मिल जाए ।और शायद मिल जाए की स्थिति यदि सामान्य हो तो तो ठीक है कभी-कभी यह स्थिति असामान्य हो जाती है और हम गए हुए धन को, गए हुए पैसे को पुनः प्राप्त करने में ही अपने जीवन को लगा़ देते हैं ।परिणाम क्या होता है कि गया हुआ धन प्राप्त होता नहीं है और बाकी जीवन में जो हम और धन कमा सकते थे । वह नही कमाते हैं । तो हमारा बाकी जीवन भी नष्ट भ्रष्ट हो जाता है और हम दोष देते हैं उस पैसे मारे जाने पर ।


"Paisa maara gaya" "पैसा मारा गया"

जबकि धन का मारा जाने में दो परिस्थितियां हैं या तो हमने किसी का पिछले जन्म में मारा होगा या उसने इस जन्म में मारा है ।यदि दासाभास ने उसका मारा था तो चुका दिया । और वह मार रहा है तो चुकाएगा ।अतः जैसे पति पुत्र पत्नी माता पिता को मरा हुआ मान कर हम यह सोचते हैं कि यह वापस नहीं आएगा ।उसी प्रकार मारे हुए धन को दिमाग में यह सोच लें कि यह वापस नहीं आएगा । लेकिन मानव है प्रयास जारी रखें साथ ही अपनी वैकल्पिक व्यवस्था तैयार कर लें । श्रीमद्भागवत में दासाभास ने एक श्लोक देखा है जिस में कहा गया है कि जिन पर में कृपा करता हूं उनका धन हरण कर लेता हूं ।कुछ मूर्खों को ऐसा भी भान रहता है कि हमारा यदि धन हरण हुआ तो हम पर भगवान की कृपा हो रही है । हा हा हा ।ऐसा बिल्कुल नहीं है ।भगवान जिन पर कृपा करते हैं वह पूर्ण शरणागत भक्त होते हैं और अभी दासाभास सहित हम लोगों को शरणागति की हवा भी नहीं लगी है ।हमें फिल्मों की हवा लगी हुई है । फिल्मों की गंदी लगभग वेश्या जैसी नायिका के अनुसार हम आजकल शरारा पहन के डोलते हैं ।जिनको शरणागति हो गई है, वह न फिल्म देखते हैं ना हर 6 महीने में फैशन के अनुसार वस्त्र बदलते हैं ।अतः इस भ्रम में ना पड़ें । जिसका धन हरण हो रहा है, वह प्रारब्ध वश हो रहा है ।और जिन भक्तो का ठाकुर धन हरण करते हैं ।घर, परिवार , स्त्री, धन, पुत्र , व्यापार आदि उनको सब संकट लगता है ।तो जैसे शरणागत भक्तों के अन्य संकट हरते हैं उसी प्रकार यह धन रूपी संकट भी वह हर लेते हैं । ये भाव ह उस श्लोक का ।धन आपको यदि संकट लग रहा है तो धन से पहले आपको स्त्री पुत्र माता घर गृहस्ती संकट लगेगी ।हम आत्म चिंतन करें । क्या यह हमें संकट लग रहे हैं । दासाभास को तो अभी बिलकुल नहीं । अतः भ्रमित ना हों और और जीवन में लाभ हानि जीवन मरण यश अपयश को प्रारबद्ध की एक प्रक्रिया मानकर इन से अनासक्त रहे । अप्रभावित रहने का प्रयास करें ।और जीवन भजन के लिए मिला है भजन पर केंद्रित करें । भजन भजन भजन ।

समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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