संसार ही सार
इस संसार में अनेक प्रकार के क्लेश हैं रोग हैं । रोगी हैं भोगी हैं । क्रिमनल हैं पापी हैं । तापी हैं । लेकिन इस बात को मत भूलना कि हमारा गोविन्द भी इसी संसार में है हमें दूसरे दूसरे लोगों से नही गोविन्द के प्यारों से वास्ता रखते हुए । गुरु से वास्ता रखते हुए । वैष्णवों से वास्ता रखते हुए गोविन्द के ▶ चरणारविन्द की सेवा तक पहुंचना है
ये संसार वास्तव में तो कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति के लिए बनाया था । हमे भी साधन के लिए बनाया था । लेकिन हम स्त्री चरण लोलुप हो गए ।अतः प्रणाम है इस संसार को जिसमे हमारे ठाकुर का धाम वृन्दाबन है ।बरसाना है । संत हैं । सिद्ध हैं । गुरुजन हैं । हम हैं । आप हैं । इसका अपने मतलब का उपयोग करो और बाकी से | विचरेत् असंगः| अनासक्त होकर विचरण करो । असंग रहो । जेसे भीड़ में तुम्हारे साथ बेटी चल रही होती है तो उसका ध्यान रखते हो । दूसरी ओर कोई और चल रहा होता है उसका ध्यान नही रखते हो । ये है असंग ।वो या संसार चलेगा साथ ही । लेकिन उसका संग मत करो । ध्यान मत दो । चलने दो । हमे क्या । ये भाव ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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