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Writer's pictureDasabhas DrGiriraj Nangia

"slowly slowly" "धीरे सब कुछ होय"

धीरे सब कुछ होय


जिस प्रकार हमारा जीवन धीरे धीरे चलता है हम धीरे-धीरे बड़े होते हैं मोटे होते हैं धन बढ़ता है संतान होती है विवाह होते हैं हमारी शिक्षा पूर्ण होते होते जीवन के 25 30 वर्ष लगते हैं हम्में धीरे-धीरे गुणों का विकास होता है धीरे-धीरे हम में दोषों का विकास होता है उसी प्रकार भजन में भी हमें धैर्य और धीरे-धीरे वाली पद्धति को अपनाना पड़ता है । 1 दिन में या 1 साल में या 10 । 5 माला करने से भगवान नहीं मिलते हैं हमारे अंदर जो बुरी आदतें आ गई हैं वह 1 दिन में नहीं छूटती हैं धीरे-धीरे उनको छोड़ने का प्रयास करना चाहिए धीरे-धीरे भजन को प्रयास बढ़ाने का हमें करना चाहिए साथ ही भजन के लिए जो उपाय हैं उनके ऊपर भी धीरे-धीरे चिंतन करके धीरे धीरे धीरे से हमें उन्हें अपनाना चाहिए श्रीरूप गोस्वामी पाद ने धैर्यात । भक्ति में धैर्य को भी बहुत महत्व दिया है । भजन के लिए भोजन पर केंद्रित करना बहुत आवश्यक है ।भोजन में दो बातें महत्वपूर्ण हैं एक तो अल्प मात्रा में भोजन लिया जाए बहुत थोड़ा जिससे शरीर की रक्षा हो सके और उस शरीर से भजन हो सके इतना भोजन हमें करना चाहिए ।अब यदि हमारा चकाचक भोजन करने का अभ्यास है तो अगले ही दिन आप एक या दो रोटी पर आ जाएंगे तो परेशानी होगी



"slowly slowly" "धीरे सब कुछ होय"

यदि आप 6 रोटियां खाते हैं तो धीरे-धीरे पांच करिए चार करिए तीन करिए दो करिए एक करिए ।ऐसे ही भोजन में वैराइटी का त्याग कीजिए चकाचक भरी हुई थाली खाने वाले को धीरे धीरे अपनी थाली को हल्का करना चाहिए चार कटोरिया जो हैं वह धीरे-धीरे 3 हों, 2 हो फिर एक हो । एक समय मे एक आइटम ।अचार, एवम चटपटी, उत्तेजक वस्तु ना खाएं पापड़ ना खाएं दही को हटा दें केवल एक दाल या एक सब्जी या दो रोटियां ।यह सब धीरे-धीरे करेंगे तो हम होंगे कामयाब एक दिन लगातार झटके से यदि यह करेंगे तो हमें सफलता मिलने में संदेह है भोजन यदि शुद्ध होगा । भोजन जिस धन से लिया गया है वह धन यदि शुद्ध होगा तो हमारी वाणी भी शुद्ध होगी हमारा मन अंतःकरण शुद्ध होगा हमारे विचार शुद्ध होंगे हमारा आचरण शुद्ध होगा और हम भजन करने के लिए अपने आपको उपयुक्त पाएंगे ।वैसे ये सब बातें ईमानदारी से भजन करने वालों के लिए हैं । सामान्य जन के लिए नहीं


समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।

।। जय श्री राधे ।।

।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज

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