तीन तीन तीन
किसी भी लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें तीन परिस्थितियों पर ध्यान रखना होता है पहली है वस्तु का गुण या लक्षण
जैसे हमने अपने चित्त को शुद्ध करना है तो हमें ऐसी वस्तु का आश्रय लेना होगा जो चित को शुद्ध करती हो तो पहली चीज हो गई वस्तु और वस्तु का गुण या लक्षण । हमें करना तो चित को शुद्ध है और हम शराब की बोतलें इकट्ठी करें तो हमें लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी
दूसरा है परिश्रम हमें चित को शुद्ध करना है तो उसके लिए हमें परिश्रम करना होगा उसका जो उपाय बताया गया है उस विषय में मेहनत करनी होगी । लगना होगा ।कठिन परिश्रम करना होगा । प्राथमिकता देनी होगी तब जाकर कहीं हम लक्ष्य की प्राप्ति कर पाएंगे । यदि हमें चित को शुद्ध करना है तो उसके लिए चेतो दर्पण मार्जनम । श्रीहरिनाम जप या हरिनाम संकीर्तन को ही उपाय बताया है । हरिनाम जप संकीर्तन परिश्रम पूर्वक करना ही होगा ।तीसरी बात है कृपा
हम नाम का आश्रय, नाम के प्रति परिश्रम करें तब हमें भगवान की संत गुरुजनों की कृपा प्राप्त होगी । कृपा प्राप्त होने से हमारा लक्ष्य भगवत्प्राप्ति या चित् शुद्धि होकर भगवत कृपा की प्राप्ति द्वारा कृष्ण चरण सेवा प्राप्त हो जाएगी ।अब हम केवल कृपा पर आश्रित रहे कि गुरुजनों की कृपा से ही सारा काम हो जाएगा तो शायद नहीं होगा तीनों ही चीजें हमें चाहिए । कृपा भी चाहिए । भगवत प्राप्ति का कारण कृपा है
और कृपा का कारण परिश्रम है और परिश्रम भी सही दिशा में । परिश्रम जिस विषय में हम कर रहे हैं उस वस्तु के गुण का भी हमें ध्यान रखना होगा शराब पीकर चित शुद्ध नहीं होगा अतः वस्तु का गुण, परिश्रम और कृपा इन तीनों का जब तक संयुक्त उपक्रम नहीं होगा तब तक कम से कम भगवत चरणारविंद की प्राप्ति, भक्ति की प्राप्ति, भजन की प्राप्ति, सेवा की प्राप्ति शायद नहीं होगी ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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