"Two types of audience" "श्रोता दो प्रकार के "
- Dasabhas DrGiriraj Nangia
- Jul 8, 2019
- 2 min read
श्रोता दो प्रकार के
जिस प्रकार चार प्रकार के वक्ता कहे गए हैं उसी प्रकार दो प्रकार के श्रोता कहे गए पहले श्रोता हैं विचार प्रधान ।विचार प्रधान श्रोता वे हैं जो आत्म कल्याण के लिए श्रवण करते हैं । गीता के श्रोता अर्जुन को विचार प्रधान श्रोता कहा गया है । मेरा कल्याण कैसे होगा । मुझे स्वर्ग की प्राप्ति कैसे होगी । युद्ध करने से तो मुझे नर्क मिलेगा उनके श्रवणमें में मैं मैं मैं ही है अतः उनको विचार प्रधान श्रोता कहा गया । यद्यपि वे श्री कृष्ण के सखा थे लेकिन कृष्ण की बात को राजी राजी मान नहीं रहे थे तो कृष्ण ने उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान कर जब अपना ऐश्वर्य दिखाया तब उनकी बात को मानते चले गए ।

शास्त्रों में यह भी कहा गया कि बाद में उन्हें भय भी लगा । और बोले कि कृष्ण मैं तो तुम्हें अपना सखा मानता रहा और तुम से शिष्टाचार रहित भाषा में बात करता रहा लेकिन आप तो समस्त सृष्टि के नियंता हैं परब्रह्म है ईश्वर हैं । ऐश्वर्य आने से उनके सख्य भाव भी थोड़ा सा छिद्र जैसा हो गया । दूसरे प्रकार के जो श्रोता हैं वह है रुचि प्रधान रुचि प्रधान श्रोता वह होते हैं जिनकी भजन करते-करते श्रद्धा, साधु संग, भजन क्रिया, अनर्थ निवृत्ति, निष्ठा, और भजन साधन में रूचि हो जाती है । रुचि होने के कारण वह भगवत कथा भगवत लीला भगवत गुणगान को सुनते हैं उनके इस श्रवण में केंद्र भगवान होते हैं ।और विचार प्रधान के श्रवण में केंद्र आत्म कल्याण होता है । इसके अतिरिक्त भी शास्त्रों में अनेक प्रकार के स्रोतों का विवेचन है लेकिन वह सभी श्रोता इन दो प्रकार के अंतर्गत ही आते हैं ।हम भगवान को केंद्र में रखकर श्रवण करेंगे तो इससे बड़ा आत्म-कल्याण और क्या होना है ।
समस्त वैष्णव वृंद को दासाभास का प्रणाम ।
।। जय श्री राधे ।।
।। जय निताई ।। लेखक दासाभास डॉ गिरिराज
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